जिन्दगी के मोल

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                जिन्दगी के मोल        


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शीर्षक - जिन्दगी के मोल


विधा - कविता

शीर्षक- ज़िंदगी का मोल



गुमनाम अंधेरे से जाना मैंने रोशनी तेरा वजूद क्या है

क्योंतुझे ही चाहता यहाँ हर कोई तेरा रसूख क्या है



स्याह घोर अंधेरों में टूटी साँसें दम घुटने सा लगा है

समझा तब जाकर हमने कि साँसों का मोल क्या है



रुसवाईयाँ सहीं और खाई ठोकरें बेदर्द ज़माने की हैं

अहसास हुआ ज़िंदगी छलावा है तेरा रूप दोहरा है



कसम खाई है अपनी ज़िंदगी से दूर करने अंधेरे हैं 

आज़मा हौंसला मेरा मैं भी देखूं तुझमें दम कितना है

-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना









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गौरवशाली इतिहास के अवशेष

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        गौरव शाली इतिहास के अवशेष   


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शीर्षक - गौरवशाली इतिहास के अवशेष


विधा -कविता




भव्यता के अवशेष मात्र है अब

देखो अप्रतिम एक पुराना महल

जहाँ कभी हरदम रहा करती थी

अपार रौनक और चहल - पहल



साक्षी हैं यह शौर्य - गाथाओं की

अमरप्रेम की अनूठी कथाओं की

साहस - शौर्य एवम् बलिदान की

जौहर एवम् सतियों के मान की



भव्यता भव्यतम राजदरबारों की

राजसी ठाट-बाट के व्यवहारों की

उच्च झरोखों - अट्टालिकाओं की

गगनचुंबी मेहराबों एवं मीनारों की



मधुर रागों - रागनियों के गान की

वाद्य - यंत्रों की सुरमयी तान की

मधुर वीणा संग मृदंग की थाप की

घुंघरुओं पर थिरकती पदचाप की



घुमावदार गोल-गोल गलियारों की

चौड़े-चौक और चौकोर-चौबारों की

रहस्यमय गुप्त स्थानों तहखानों की

कलात्मक अलंकृत द्वार दीवारों की



वो चिंघाड़ें सुसज्जित हाथियों की

 वो हिनाहिनाहटें तीव्र वाजियों की

खनक तेज़ तीरों और तलवारों की

कटक -कटीली -काट -कटारों की



भव्यता बताते यह सब इतिहास की

बात नहीं कदापि हास- परिहास की

निज स्वर्णिमयुग के उस इतिहास की

जीवन के क्षणभंगुरता के आभास की



-© Anjalee Chadda Bhardwaj

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किसान

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                किसान                   


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शीर्षक - किसान



सूरज उगने से
तुम्हारे जागने से पहले
उठ अपने बिस्तर से
खेत को जाता है
एक खेतिहर किसान

चाय पानी राशन
एक थैली में लेकर साथ
खेत के बीच चूल्हा जलाता है
एक खेतिहर किसान

उगाकर अनाज
पाल पोश कर बड़ा करता
पकाकर काट फसल
तुमे खिलाता है
एक खेतिहर किसान

तुमे क्या पता ? कैसे पकती है फसल
दाने दाने का हिसाब रखना पड़ता है
गिरवी रख,गिरवी रहकर
अपना परिवार चलाता है
एक खेतिहर किसान।

शीर्षक- किसान
©️jasuram



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अफसोस करेगा मानुष

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         अफसोस करेगा मानुष      


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शीर्षक - अफसोस करेगा मानुष


रचना 5-

अफसोस करेगा मानुस
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

सुप्त सी है यह मनुष्यता
जागा है नींद से भ्रस्टता...!

अणु परमाणु से दिखा रहा है शक्ति अपना
वसुमति बिभाजन करता है सीमारेखा से अपना...!

जनमेजय है सत्य सनातन धर्म
अवतारेगा देवता इक दिन समझाने इसका मर्म...!

-•°Rimjhim•°




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प्रकृती

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शीर्षक - प्रकृति


रचना 4-
 प्रकृति
°°°°°°°°°क्या खूब बनाया है खुदा ने कायनात को,
दिलनशी पौधे हैं यहां जैसे स्वर्ग से आया पारिजात हो।

षट पदों के चूमने से छा रहे हैं कली कली,
रूखे पेड़ पर लटक रही है नवजात सी छिपकली।

लहरा रहे हैं फिज़ा फिज़ा हवाओं के चलन से,
सुनहरे धूप पिघला रहे हैं कोहरों को सिलन से।

हरी चुनरिया पर सिंदूर भर भूमि श्रृंगार करती है,
रात भर सोई सूरजमुखी अब आहिस्ता आहिस्ता निखरती है।






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दिल चाहता है

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शीर्षक - दिल चाहता है



रचना 3-
दिल चाहता है
°°°°°°°°°°°°°

दिल चाहता है,
सुबह जो खोलूं अखियां
हो पहले दीदार तेरा!
नींद से बोझल नैना मेरे.
देखें जिसे सबसे आखिर में..
वह चेहरा भी ही बस तेरा!

दिल चाहता है,
हवा की फिजाएं यूं चलते रहे
यह मदहोश पन यूं बने रहे!
आप हमारे बालों को यूं सहलाते रहे.
हम आपके खयालों में यूं गुनगुनाते रहें..
यह पागलपंती यूं ही बनी रहे!


-•°Rimjhim°•






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प्यार(मै और तुम)

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                प्यार                        


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शीर्षक - प्यार



रचना 2-
प्यार (में और तुम)
°°°°°°°°°°′°°°°°°
जैसे सूखा ताल बचा रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई,
जैसे धूल भरे मेले में, चलने लगे साथ तन्हाई!
जैसे ध्रुव तारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए,
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धूल जाए!
मेरे मन पर भी तेरी यादें कुछ ऐसी अंकित है,
जैसे खंडहर पर पुराने सासक का शासन काल खुल जाए!
तेरे बिन होने का मतलब भी कुछ ऐसा होता है,
जैसे लावारिश बच्चे की आधी रात में नींद खुल जाए!





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क्या तेरा जाना जरुरी था

                  क्या तेरा जाना जरुरी था  बचपन तू मुझे अकेला कर गया,क्या तेरा जाना जरुरी था। यदि हाँ तो साथ ले चलता,क्या मुझे पीछे छोड़ना जर...