जिन्दगी के मोल

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                जिन्दगी के मोल        


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शीर्षक - जिन्दगी के मोल


विधा - कविता

शीर्षक- ज़िंदगी का मोल



गुमनाम अंधेरे से जाना मैंने रोशनी तेरा वजूद क्या है

क्योंतुझे ही चाहता यहाँ हर कोई तेरा रसूख क्या है



स्याह घोर अंधेरों में टूटी साँसें दम घुटने सा लगा है

समझा तब जाकर हमने कि साँसों का मोल क्या है



रुसवाईयाँ सहीं और खाई ठोकरें बेदर्द ज़माने की हैं

अहसास हुआ ज़िंदगी छलावा है तेरा रूप दोहरा है



कसम खाई है अपनी ज़िंदगी से दूर करने अंधेरे हैं 

आज़मा हौंसला मेरा मैं भी देखूं तुझमें दम कितना है

-© Anjalee Chadda Bhardwaj

मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना









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