प्रकृती

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                प्रकृती                      


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शीर्षक - प्रकृति


रचना 4-
 प्रकृति
°°°°°°°°°क्या खूब बनाया है खुदा ने कायनात को,
दिलनशी पौधे हैं यहां जैसे स्वर्ग से आया पारिजात हो।

षट पदों के चूमने से छा रहे हैं कली कली,
रूखे पेड़ पर लटक रही है नवजात सी छिपकली।

लहरा रहे हैं फिज़ा फिज़ा हवाओं के चलन से,
सुनहरे धूप पिघला रहे हैं कोहरों को सिलन से।

हरी चुनरिया पर सिंदूर भर भूमि श्रृंगार करती है,
रात भर सोई सूरजमुखी अब आहिस्ता आहिस्ता निखरती है।






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दिल चाहता है

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                दिल चाहता है           


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शीर्षक - दिल चाहता है



रचना 3-
दिल चाहता है
°°°°°°°°°°°°°

दिल चाहता है,
सुबह जो खोलूं अखियां
हो पहले दीदार तेरा!
नींद से बोझल नैना मेरे.
देखें जिसे सबसे आखिर में..
वह चेहरा भी ही बस तेरा!

दिल चाहता है,
हवा की फिजाएं यूं चलते रहे
यह मदहोश पन यूं बने रहे!
आप हमारे बालों को यूं सहलाते रहे.
हम आपके खयालों में यूं गुनगुनाते रहें..
यह पागलपंती यूं ही बनी रहे!


-•°Rimjhim°•






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प्यार(मै और तुम)

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                प्यार                        


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शीर्षक - प्यार



रचना 2-
प्यार (में और तुम)
°°°°°°°°°°′°°°°°°
जैसे सूखा ताल बचा रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई,
जैसे धूल भरे मेले में, चलने लगे साथ तन्हाई!
जैसे ध्रुव तारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए,
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धूल जाए!
मेरे मन पर भी तेरी यादें कुछ ऐसी अंकित है,
जैसे खंडहर पर पुराने सासक का शासन काल खुल जाए!
तेरे बिन होने का मतलब भी कुछ ऐसा होता है,
जैसे लावारिश बच्चे की आधी रात में नींद खुल जाए!





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नारी

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                नारी                         


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शीर्षक - नारी


रचना 1-
नारी
°°°°°°


अवला दुर्वला उपाधि मिली बहुत,
शक्ति स्वरूपिणी बन अब नारी...!
पर्दानाशीन ज़िन्दगी बहुत बीता ली तूने,
अब आंखों से दुश्मन को कर भस्म तू नारी..!
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर,
सत्यानवेषण के पथ पर निकलो नारी...!
बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया का,
अब बनो ज्वाला की चिंगारी...!


Rimjhim 



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बेदर्द मोहब्बत

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                बेदर्द मोहब्बत           

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शीर्षक - बेदर्द  मोहब्बत 

Poem 4

Bedard mohabbat


मुझे जब तू मिला तो एक खयाल मिला

उलझन से उभरा फिर एक सवाल मिला ।।


दरिया बहा ले गया एक खत जो तुम्हारी थी

बचाने निकला तो उधर तेरी निकाह की खबर मिला ।।


गजब का मोहब्बत - ए - मजाक मेरे साथ  हुआ

जब चूमा आखरी दफा तुम्हे दिल को सवर मिला ।।


अब सिकायत क्या करूं और गीला किस बात का

मेरे साथ छोड़ के अब तुम्हे एक नई मंजिल मिला ।।


मेरा मकान तो मिट्टी का था जो मेरे आंसू से गिर गया

मुबारक हो महल तुम्हारी जिसे पाकर तुम्हे सुकून मिला ।।



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माँ तू समझाकर

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                माँ तू समझाकर        


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शीर्षक - माँ  तू समझाकर



Poem 3

Maa tu samjha kar..

कोई सौक नहीं बड़े मकान का

मुझे अपने पल्लू में छुपाके रख ।।


क्या दुआ करूं उस खुदा से मां

बस तेरी साया मूझपे बना के रख ।।


भाग ना जाऊं किसी और गली में

कुछ डर तू मुझमें सजा के रख ।।


बस तेरे हाथ ना छोड़ दूं खुदगर्ज होके

मां तू एक एक कदम मुझसे बढ़ा के रख ।।


बस तेरी मोहब्बत में हद से गुजर जाऊं

कुछ ऐसा ही  ऐब मूझपे तू जगा के रख ।।







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बेबाक मोहब्बत

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शीर्षक - बेबाक मोहब्बत


Bebak mohabbat


सफर खूबसूरत हो तो तन्हा नहीं करते

थोड़ा तबज्जों दो ना हमे ऐसा नहीं करते ।।


ये लिवाज- ए- हुस्न को साफ रखा कीजिए

जो इंतजा में रुके है कबसे उसे मैला नहीं करते ।।


आशियां हमारा तो टूट चुका है कबसे ' कमल '

अगर उसे सवार ना है तो ऐसे सोचा नहीं करते ।।


आपके नज़रे कुछ बयां करती है अक्सर

अगर इजाज़त दे तो हम क्या क्या नहीं करते ।।


ये मोहब्बत की राहें में दर्द भी है और दवा भी

अगर मंजिल में वफा हो तो उसे रोका नहीं करते ।।








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                  क्या तेरा जाना जरुरी था  बचपन तू मुझे अकेला कर गया,क्या तेरा जाना जरुरी था। यदि हाँ तो साथ ले चलता,क्या मुझे पीछे छोड़ना जर...