अकेलापन

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                अकेलापन             


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शीर्षक - अकेलापन 



                  


जब  अकेले  आये  दुनिया में, 
तो अकेले क्यों नहीं रह सकतेl
जब  अकेले जाना  दुनिया से,
तो खुश क्यों नहीं रह सकतेll
  जानती   हूँ    मैं, 
बहुत  बातें  बतानी  हैl
पर कोई शख्स ही नहीं है, 
जिन्हें ये बातें सुनानी है।। 
क्यों चाहते एक शख्स, 
जो तुमको जरा समझे।
खुद ही में है वो शख्स, 
जो तुमको सदा समझे।। 
तो खुद मैं खोजो उसको, 
मिलकर  सुकून पाओगे।
पर अगर बाहर खोजा तो, 
सिर्फ   दर्द   पाओगे।। 
अब मर्जी तुम्हारी है, 
क्या चाहते हो तुम। 
अकेले रहना चाहते हो, 
या दर्द सहना चाहते हो।। 
     मानती    हूँ    मैं, 
 बहुत कठिनाई आयेगी। 
 पर  उस दर्द से बेहतर, 
तो वो  कठिनाई  भायेगी।




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जिंदगी

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                  जिंदगी                  


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शीर्षक - जिंदगी 


Poem-4
                            ज़िंदगी
जिंदगी   का   सफर, 
भरा है  पूरा काटों से। 
हँसकर तुम चलोगे तो, 
ये काटें भी है फूल से।। 
रोने   से  मिलेगा  क्या, 
दर्द  खुद को  दोगे तुम। 
जरा मुस्कुरा के देखो तो, 
कितने चेहरे खिलेगे तब।। 
मुश्किलों   का   दौर  है, 
तुम  धैर्य  रखो  गुजरेगा। 
जब नया सवेरा आयेगा, 
तो ये वक्त भी  सुधरेगा।। 

। 




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यह छोटा सा जीवन

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            यह छोटा सा जीवन    


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शीर्षक - यह छोटा सा जीवन


Poem-3

यह छोटा सा जीवन

कभी    हँसायेगा, 
तो कभी  रूलायेगा। 
पर  तू डरना मत मेरे दोस्त,
यह बस इम्तिहान लेकर जायेगा।। 
                     यह छोटा सा...... 
जीवन में अगर मुश्किलें आयेगी, 
तो बहुत कुछ सिखा कर जायेगी। 
तू बस हिम्मत से काम लेना मेरे दोस्त, 
तो ये सारी मुश्किलें भी हल हो जायेगी।। 
                    यह छोटा सा.......... 
इस  छोटे  से  जीवन  में, 
यादों  का  बड़ा  पिटारा  होगा। 
तू बस हर लम्हे को खुल के जीना मेरे दोस्त, 
ये  जीवन  न  दुबारा  होगा।। 
                   यह छोटा सा........... 





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किस्मत

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                किस्मत                


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शीर्षक - किस्मत


Poem-2
                किस्मत
क्यों कोसते हो किस्मत को अपनी, 
जरा  निकलकर  देखो  तो  बाहर। 
जो  मिला  है  तुमको  बिन  मागें, 
उसके लिए तरस रहे लोग हजार।। 
तो कोसना बन्द करो किस्मत को, 
और शुकिया करो अब उस रब को। 
जिसने  बख्शा  ये   सब  तुम  को, 
कोटि-कोटि नमन करो अब उसको।। 






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सपना

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                सपना                     


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शीर्षक - सपना


Poem-1                        
        सपना
करता जा तू कोशिश बन्दे, 
रब    तो    तेरे   साथ   है। 
डरता क्यों है  मुश्किलों से, 
ये   तो  मात्र   पड़ाव   है।। 
पड़ाव तो ऐसे बहुत आयेगे, 
तो   क्या   डरकर   बैठेगा। 
और देखा था जो सपना तू ने, 
तो   क्या   उसको   तोड़ेगा।। 
तोड़ना नहीं है सपना तुझको, 
बल्कि  उसको  तो  पाना  है।
उसके बाद जो खुशी मिलेगी, 
उसमें  ही  तो   खजाना  है।। 
माता- पिता के चेहरे पर फिर, 
प्यारी   सी   मुस्कान    होगी। 
गर्व   से   सीना   चौड़ा  होगा, 
उसमें तेरी भी तो शान होगी।। 
तो  लग  जा   फिर  तू   अपने, 
उस   सपने   को  पूरा   करने। 
और लगा दे अपनी पूरी मेहनत, 
फिर उस सपने को पूरा कर दे।। 





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मेरा परिवार

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              मेरा परिवार            


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शीर्षक - मेरा परिवार

कविता 5
विषय:-मेरा परिवार

त्याग, समर्पण के आधार से जहाँ एक दुसरे के दिल में प्यार 
खुशियों की बुनियाद है, मुस्कुराने की वजह हैं परिवार

एक दुसरें की भावनाओं की कद्र अपनापन बेशुमार
विश्वास हो मन में जहाँ खडी न होती गलतफ़हमी की दिवार

बडे बुजूर्गो की इज़्जत, छोट़ों से अशिष होता अतिथी सत्कार
अपनी संस्कृती, सभ्यता विरासत, रहते सदैव संस्कार

थोडी होती नोक़झोक पर स्नेह और प्रेम से सुलझती हर तकरार
परिवार संग हर क्षण लगता जैसे कोई तीज़-त्योहार

सुख दुःख बांट़ते मुश्किल वक्त में मजबूती से झेलते हर प्रहार
एकजूट़ का सुरक्षा कवच हमारा कोई शत्रू ना करता वार

एकता शक्ति सबकी, एक दुसरें की मिलकर खुशी से सज़ता संसार
सुखी परिवार में ही लक्ष्मी, सरस्वती सदैव रहती घर द्वार

रश्मी कौलवार




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स्वार्थ से परमार्थ तक का सफर

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शीर्षक - स्वार्थ से परमार्थ तक का सफर


कविता 4
विषय:- स्वार्थ से परमार्थ तक का सफर

हर मनुष्य के लिए आसान नही हैं, ये स्वार्थ से परमार्थ तक का सफर।
जन्म से ही स्वयं के बारे में सोचने की, आदत लगी हैं उसे इस कदर।

पहले अपना विचार करके ही, फिर वो परोपकार करता सोच समझकर।
मनुष्य जीता होकर स्वार्थी माया, मोह, ममता, आशा की पट्टी बांधकर।

परमार्थ शूरु होता, जब वो जीता दुसरों के लिए मोह, माया को त्याग कर।
अंतशक्ती जलाता काम, क्रोध, लोभ, मोह की तृष्णा को भस्म कर।

परमार्थ में प्रभू भक्ति, विवेक की ज्योती से जब जीता विरक्त होकर।
अपना अभिमान त्यागकर, कर्म भी करता सारे फल की आशा छोड़कर।

इंद्रियों को वश में करके, जब एकचित्त से प्रभू का ध्यान, चिंतन कर।
दर्शन देते प्रभू एक ना एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर।

रश्मी कौलवार 
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क्या तेरा जाना जरुरी था

                  क्या तेरा जाना जरुरी था  बचपन तू मुझे अकेला कर गया,क्या तेरा जाना जरुरी था। यदि हाँ तो साथ ले चलता,क्या मुझे पीछे छोड़ना जर...