अजीब दुनिया

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             अजीब दुनिया              


©️copyright :   aruna jaiswal ,bloomkosh के की अनुमति है।इस रचना का प्रयोग    की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता है।


शीर्षक - 


कितनी अजीब है यह दुनिया,
और इस दुनिया के रंग,
है कुछ ऐसे भी जो दूर रहकर भी पास है,
और है कुछ बहुत दूर, रहकर भी संग।
                कोई सच्चे साथी के लिए तड़पता,
                तो कोई पास होने पर भी परवाह नहीं करता।
                जैसे कोई तपते रेगिस्तान में पानी की बूँद को तलाशता,
                तो कोई सागर में भी प्यासा खुद को पाता।
जैसे कोई मीन बाढ़ के साथ मरूस्थल में आ जाए,
और उसी को तालाब समझ वहीं रुक जाए,
जब हो उसका असलियत से सामना,
तो उसके पैरों तले जमीन खिसक जाए।
             तड़पती, इधर-उधर भटकती वह मात्र एक तालाब के लिए,
            ‌ क्या इसी के लिए थे उसने सागर छोड़ दिए?
             हिम्मत नहीं हारी उसने, आख़री दम तक करती रही प्रयास,
              कुछ दूरी पर पानी देखकर बंधी थी उसे आस।
पर यह क्या? दिल उसका सहम गया,
मृग मरीचिका देखकर जीवन भी उसका थम गया।
खुश्बु ढूंढती जरिया और जरिया तलाशता मंज़िल,
सभी एक के पीछे एक, नहीं किसी को भी कुछ हासिल।




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सब राज था झुठा

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                सब राज था झुठा      


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शीर्षक - सब राज था झुठा 


एक दिन औरों के लिये 

कुर्बान करके आयी वो काली रात 

सो रहा था अकेला कर गयी वो घात

समझ नहीं सका मैं ,और 

न ही समझ सकी वो

वो गया उजाला, पौ फटी ,किनारा टुटा 

सब राज था झुठा 

मुझे बनाया शिकार ,बन गयी खुद धन्धुकार।





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एक सवाल

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               एक सवाल                


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शीर्षक - एक सवाल


एक सवाल है समाज के ठेकेदारों से, क्यों हर बार हर्जाना नारी को भरना पड़ता है?
क्यों पुरूष प्रधान समाज में, सागर तो हमेशा रुक जाते हैं, नदियों को ही बहना पड़ता है।

लक्ष्मी ,अवंती ,दुर्गा ये सब वो नारी थी ,जिनके आगे पुरुषों की समाज भी हारी थी
फिर भी क्यों हर युगों में , जीवन की अग्निपरीक्षा से औरत को ही गुजरना पड़ता है ? 
सागर तो रुक ...... 

क्यों बेटो को बेटी से बढ़कर माना जाता है? क्यों गर्भ में कन्या भ्रूण को ही मरना पड़ता है?
क्यों उच्च शिक्षा हमेशा बेटों को दिलाई जाती है? क्यों बेटी को ही अनपढ़ रहना पड़ता है?
सागर तो रुक....... 

क्यों बहु ही हमेशा जिंदा जलाई जाती हैं? क्यों औरत की ही बोली लगाई जाती है?
क्यों परदे में औरत को घुटकर रहना पड़ता है। क्यों हर दर्द चुप होकर सहना पड़ता है?
सागर तो रुक........ 

क्यों हर रूढ़िवादिता, औरत पर लागू होती है, क्यों नारी ही हमेशा चिता पर जिंदा सोती है।
क्यों हर युग में सीता का ही हरण होता है,क्यों हर युग में नारी को जौहर करना पड़ता है?
सागर तो रुक........ 
एक सवाल............ 
-priya pandya




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कैसे संभाले

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               कैसे संभाले               


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शीर्षक - कैसे संभाले 


बागवा प्यारा सा, मेरा तूफा में बिखर सा गया है! 
वक़्त के साथ मेरा बहुत कुछ बदल सा गया है! 

ज़िंदगी की कश्ती बीच मझदार में डगमगाती रही! 
कैसे बचे जब साहिल हमसे पीछे कहीं छूट सा गया है! 

कैसे संभाले जब माँझी ही हमें डुबाने पर उतारूँ हो! 
लगता है हमें खुदा हमारा हमसे अब रूठ सा गया है।

आखिर हौसले की पतवार भी कब तक यूँ बचाएगी! 
जब शांत लहरों में ही तूफान अब उठ सा गया है।

आखिर समेटे भी तो कैसे आईने के टूटे टुकड़ों को।
जब अक्स ही हमारा इस दुनिया में बन झूठ सा गया है।

अब तो ना डूबने का डर और ना ही बचने की आस हैं।
जो संग था कारवां हमारे वह कहीं पीछे छूट सा गया है।




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आओ कान्हा

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                आओ कान्हा             


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शीर्षक - आओ कान्हा


चहूँ ओर घोर पाप तांडव कर रहा, बढ़ रहा है अत्याचार।
कैसा ये युग, जहाँ हर कोई त्राही त्राही कर रहा मचा हाहाकार?

विनाश लीला कर रही प्रकृति, अपने ही अपनों पर कर रहे प्रहार।
लूटी जा रही है अस्मत नारी की,अब कौन?आकर करें दुष्टों का संहार! 

बड़े बुजुर्गों का ना रहा आदर, सिर्फ कुकुर और फ़ोन से करते प्यार।
कैसी ये होड़ मची सोशल मीडिया पर,अपनों से ना रखते अब सरोकार! 

अनाचार का आतंक बढ़ा, हृदय में ईर्ष्या और राग द्वेष हो रहा सुमार।
अब फिर धर्म की स्थापना हेतु आओ कान्हा लेकर कल्की अवतार।

-priya pandya




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मेरा प्यार

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                मेरा प्यार                  


©️copyright :neetu ashwani   ,bloomkosh के पास संकलन की अनुमति है।इस रचना का प्रयोग    की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता है।


शीर्षक - मेरा प्यार

रिश्तो में झुकना समझौता नहीं यह तो मेरा प्यार है 
और मेरा प्यार बना दे उनको नाकारा तो यह कैसा प्यार है

थामे रखना अपनों का हाथ यह तो मेरा प्यार है 
पर बिना सहारे वह चलना ही ना चाहे तो यह कैसा प्यार है ।

गिरने ना पाए कभी वह जीवन में देखना मेरा प्यार है 
पर गिरने की भय से आगे बढ़ ही ना चाहे तो यह कैसा प्यार है ।
 
सुख सुविधा में कमी ना आए उनकी ध्यान देना मेरा प्यार है
 पर पैसे की वो कीमत ही ना जाने तो यह कैसा प्यार है ।

 जूटा रहूं मैं इस कोशिश में दिल दुखे ना उसका यह मेरा प्यार है
 पर मेरे दिल की वो यह कमजोरी समझे यह कैसा प्यार है ।

 क्या संस्कारों की डोर से बंधा में खामोशी अपना लूं यह मेरा प्यार है
पर मेरी खामोशी पर वह रिश्तो का महत्व भूल जाए यह कैसा प्यार है 

अगर जिंदगी की हकीकत से वाकिफ कराउ तो यह मेरा प्यार है पर जिंदगी की उसी भीड़ में वह मुझको भूल जाए यह कैसा प्यार है । 

प्यार के बदले में मैंने भी प्यार चाहा उनसे क्या यह मेरा प्यार है
पर मेरे प्यार को वह मेरी कमजोरी समझे तो यह कैसा प्यार है । 




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शादी के पहले और बाद

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       शादी के पहले और बाद       


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शीर्षक -  शादी से पहले और बाद 


शादी के बाद ऐसे बदला सब कुछ रहा नहीं जो था पहले 
पर आज समझ ही गई कुछ किसी के कहने से पहले

 उठती थी जो कभी देरी से बस हाँ थोड़ा दिन से पहले
 पर आज सवेरे उठ जाती हूं सूरज निकलने से पहले 

खाना-पीना जो करती थी सब अपने मन से पहले
 पर आज कल बनाने की रखती हूं सोच कर एक दिन से पहले

 जब चाहे सखियों से मिलने निकल जाती थी पहले 
पर आज 10 बार सोचती हूँ घर से निकलने से पहले 

पहन लेती थी कुछ भी जो हाथ आ जाता था पहले
पर आज पहनती हूँ सलिके से साड़ी बाहर कदम रखने से पहले

लड़की थी जो मां पापा से कुछ समझाने पर पहले 
पर आज स्वयं समझ जाती हूं किसी के कहने से पहले 

जो सांझा करती थी अपना हर दुख दर्द मां पापा से पहले 
पर आज छुपा लेती हूं हर दुख उनसे ही सबसे पहले 

जानती हूं वह दिन लौट कर वापस नहीं आएंगे जो थे पहले 
पर आज को भी बेहतर बना सकती हूं जैसे सोचे थे पहले 



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