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सब राज था झुठा
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शीर्षक - सब राज था झुठा
एक दिन औरों के लिये
कुर्बान करके आयी वो काली रात
सो रहा था अकेला कर गयी वो घात
समझ नहीं सका मैं ,और
न ही समझ सकी वो
वो गया उजाला, पौ फटी ,किनारा टुटा
सब राज था झुठा
मुझे बनाया शिकार ,बन गयी खुद धन्धुकार।
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