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हम जिद्दी
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शीर्षक - हम जिद्दी
देखो आज यह सागर कितना शांत है,
क्योंकि थम चुका अब तूफ़ान है।
वही तूफ़ान जो मचा रहा था उत्पात अपार,
थी हमारी भी नैया उस समय मझधार।
अब बातें थीं अपनों की याद आने लगी,
कहा था उन्होंने कि है खतरा, हमें है आशंका लगी।
किन्तु हम ठहरे जिद्दी, हम ना सुनते किसी की,
करके हौंसले बुलंद, कर ली थी हमने भी अपने मन की।
लगता था ऐसा कि जैसे सागर की लहरें पुकार रही,
कभी सागर में भी सफर करो, जैसे हो हमसे कह रही।
न रोक सके थे हम खुदको और नैया थी आगे बढ़ा दी,
क्या होगा आगे? नहीं थी इसकी परवाह की।
अब था हमने भी तूफान को ललकारा,
था एकमात्र विश्वास ही हमारा सहारा।
पहुंचेंगे अवश्य किनारे पर, यह अटूट विश्वास था,
जीत हुई विश्वास की और पा लिया हमने किनारा था।
हौंसले यदि बुलंद हो और खुद पर हो विश्वास, तो कभी न सकोगे तुम बिखर,
अपनी कमज़ोरी को ताकत बना 'अरुणिमा सिन्हा' थी चढ़ गई ,सर्वोच्च शिखर।
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