नारी

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                नारी                         


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शीर्षक - नारी


रचना 1-
नारी
°°°°°°


अवला दुर्वला उपाधि मिली बहुत,
शक्ति स्वरूपिणी बन अब नारी...!
पर्दानाशीन ज़िन्दगी बहुत बीता ली तूने,
अब आंखों से दुश्मन को कर भस्म तू नारी..!
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर,
सत्यानवेषण के पथ पर निकलो नारी...!
बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया का,
अब बनो ज्वाला की चिंगारी...!


Rimjhim 



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बेदर्द मोहब्बत

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                बेदर्द मोहब्बत           

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शीर्षक - बेदर्द  मोहब्बत 

Poem 4

Bedard mohabbat


मुझे जब तू मिला तो एक खयाल मिला

उलझन से उभरा फिर एक सवाल मिला ।।


दरिया बहा ले गया एक खत जो तुम्हारी थी

बचाने निकला तो उधर तेरी निकाह की खबर मिला ।।


गजब का मोहब्बत - ए - मजाक मेरे साथ  हुआ

जब चूमा आखरी दफा तुम्हे दिल को सवर मिला ।।


अब सिकायत क्या करूं और गीला किस बात का

मेरे साथ छोड़ के अब तुम्हे एक नई मंजिल मिला ।।


मेरा मकान तो मिट्टी का था जो मेरे आंसू से गिर गया

मुबारक हो महल तुम्हारी जिसे पाकर तुम्हे सुकून मिला ।।



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माँ तू समझाकर

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                माँ तू समझाकर        


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शीर्षक - माँ  तू समझाकर



Poem 3

Maa tu samjha kar..

कोई सौक नहीं बड़े मकान का

मुझे अपने पल्लू में छुपाके रख ।।


क्या दुआ करूं उस खुदा से मां

बस तेरी साया मूझपे बना के रख ।।


भाग ना जाऊं किसी और गली में

कुछ डर तू मुझमें सजा के रख ।।


बस तेरे हाथ ना छोड़ दूं खुदगर्ज होके

मां तू एक एक कदम मुझसे बढ़ा के रख ।।


बस तेरी मोहब्बत में हद से गुजर जाऊं

कुछ ऐसा ही  ऐब मूझपे तू जगा के रख ।।







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बेबाक मोहब्बत

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                बेबाक मोहब्बत         


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शीर्षक - बेबाक मोहब्बत


Bebak mohabbat


सफर खूबसूरत हो तो तन्हा नहीं करते

थोड़ा तबज्जों दो ना हमे ऐसा नहीं करते ।।


ये लिवाज- ए- हुस्न को साफ रखा कीजिए

जो इंतजा में रुके है कबसे उसे मैला नहीं करते ।।


आशियां हमारा तो टूट चुका है कबसे ' कमल '

अगर उसे सवार ना है तो ऐसे सोचा नहीं करते ।।


आपके नज़रे कुछ बयां करती है अक्सर

अगर इजाज़त दे तो हम क्या क्या नहीं करते ।।


ये मोहब्बत की राहें में दर्द भी है और दवा भी

अगर मंजिल में वफा हो तो उसे रोका नहीं करते ।।








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सब दिखावा है

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शीर्षक - सब दिखावा है




Poem 1

Sab dikhawa he

............................

ये आरती ये सृंगार आज किस काम की

दस बे दिन के बाद फिर सिकार तेरे शाम की !!


जो आज हर घर हर गली में मेरे नाम के गुण गाते हो

जब मांगती रहम तो गर्दन मोड के क्यों चले जाते हो !!


ये जो लगाए हो तमाशा नारी भक्ति का इस जाहान में

तुम ही वो कातिल निकलो गे जब लौटाओगे समसान में !!


मत करो ये दिखावा उसपे जो तुमको बनाया सवारा है

असली पूजा तो उसकी करो जो बेचारी किसिका साहारा है !!






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अब तो आजा माँ


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                अब तो आजा माँ       


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शीर्षक - अब तो आजा माँ 



तरसी है यह अँखियां, न जाने कब से माँ,
पुकारती तेरी संतान, अब तो आजा, हे 'माँ'।

हो रहा है शंखनाद, साथ में फूलों की बरसात,
भँवरे कर रहे गुंजन, बड़ी सुहानी है यह रात,
देखो जरा! अतुलनीय खुशी से कैसे सिंह सजा है,
मस्त पवन से लहरा रही मेरी 'माई' की ध्वजा है।
                   हुई है 'महामाया' अब शेर पर सवार,
                   एक हाथ में सोहे खप्पर, दूजे में तलवार,
                   देखो क्षिति भी स्वागत गीत है गा रही,
                   माँ के दर्शन की अब घड़ी निकट आ रही।
मिटा हर ताप इस धरा से, तेरी बेटियां पुकारती,
कहीं बंद कमरों से तो कहीं दबाई गई, तेरी संताने चित्कारती।
है यकीं हमें भी कि अब धरा का भार हटेगा,
निर्मलता की सुगंध से यह सारा संसार महकेगा।
        मिटेगा हर अँधकार और अमावस को भी उजियारी छाएगी,
        जब इस तम को मिटाने को स्वयं महामाया धरा पर आएंगी




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हम जिद्दी

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शीर्षक - हम जिद्दी


देखो आज यह सागर कितना शांत है,
क्योंकि थम चुका अब तूफ़ान है।
वही तूफ़ान जो मचा रहा था उत्पात अपार,
थी हमारी भी नैया उस समय मझधार।
                 अब बातें थीं अपनों की याद आने लगी,
                 कहा था उन्होंने कि है खतरा, हमें है आशंका लगी।
                  किन्तु हम ठहरे जिद्दी, हम ना सुनते किसी की,
                करके हौंसले बुलंद, कर ली थी हमने भी अपने मन की।
लगता था ऐसा कि जैसे सागर की लहरें पुकार रही,
कभी सागर में भी सफर करो, जैसे हो हमसे कह रही।
न रोक सके थे हम खुदको और नैया थी आगे बढ़ा दी,
क्या होगा आगे? नहीं थी इसकी परवाह की।
                     ‌  अब था हमने भी तूफान को ललकारा,
                 ‌‌      था एकमात्र विश्वास ही हमारा सहारा।
                       पहुंचेंगे अवश्य किनारे पर, यह अटूट विश्वास था,
                   जीत हुई विश्वास की और पा लिया हमने किनारा था।
 
हौंसले यदि बुलंद हो और खुद पर हो विश्वास, तो कभी न सकोगे तुम बिखर,
अपनी कमज़ोरी को ताकत बना 'अरुणिमा सिन्हा' थी चढ़ गई ,सर्वोच्च शिखर।




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क्या तेरा जाना जरुरी था

                  क्या तेरा जाना जरुरी था  बचपन तू मुझे अकेला कर गया,क्या तेरा जाना जरुरी था। यदि हाँ तो साथ ले चलता,क्या मुझे पीछे छोड़ना जर...