जागृत करो अंतरात्मा

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             जाग्रत करो अंतरात्मा    


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शीर्षक - जागृत करो अंतरात्मा


विधा: कविता
शीर्षक: जागृत करो अंतरात्मा
दिनाँक:२४/१०/२०२०
दिवस: शनिवार
कविता संख्या:2️⃣

वह किशोरी वह नव यौवना किसी  बगिया की मासूम सी कली थी। 

माता-पिता की आँखों की पुतली बड़े ही नाजों- लाडों से वह पली थी।।

भाइयों की प्राणों से प्यारी बहना लाज -शर्म और हया था जिस का गहना।

काम उसका पढ़ना, हंसना खिलखिलाना और माँ संग कामों में हाथ बँटाना।।

जाने क्यों जुल्मी- आतताईयों की कुत्सित गिद्ध दृष्टि उस पर डोल गयी।

क्या बिगाड़ा था उस मासूम ने उनका या क्या वह उनको बोल गयी।।

इतनी बेरहमी से कुचला उस कोमल कली के नाजुक अरमानों को।

इंसान की तो बिसात ही क्या देख कर शर्म आ जाए हैवानों  को।।

इतने कुकर्मों के बाद भी हत्यारों का कलेजा नहीं तृप्त हुआ।

रूदन क्रंदन सुनकर भी वह पिशाच हैवानियत में लिप्त हुआ।।

मरणासन्न अवस्था करके उसको सड़ने को नर्क में झोंक दिया।

फिर शर्मसार हुई मानवता उसके सीने में खंजर घोंप दिया।।

इस मूकबधिर समाज की उपेक्षा वह और अधिक ना सहने पाई।

सदा के लिए मौन हो गई मिट्टी में मिल गई वह इस मिट्टी की जाई।।

एक यक्ष प्रश्न आज फ़िर से वह हम सबके समक्ष छोड़ गई।

आख़िर कब तक सब मौन धरेंगे  कब तक चढ़ेगी मासूमों की बलि।।

समय आ गया है अब सब संगठित हो कर बुलंद आवाज़ उठाओ।

ऐसे नीच अधम दुष्कर्मियों को सामाजिक अधिकारों से वंचित करवाओ।।

अध्यादेश निर्माण हो ऐसे कि इनको माफी नहीं सीधे फाँसी पर लटकाओ।

निर्ममता का बदला अति निर्मम हो इन पर हरगिज़ दया ना दिखलाओ।

-© Anjalee Chadda Bhardwaj
मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
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