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राजतन्त्र का षड्यंत्र
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शीर्षक - राजतंत्र का षड्यंत्र
विधा: कविता
शीर्षक: राजतंत्र का षड्यंत्र
दिनाँक:२४/१०/२०२०
दिवस: शनिवार
कविता संख्या: 5️⃣
सदियों से ही होता आया राजतंत्र का षड्यंत्र है
अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति का यह भी तंत्र है
केकई और मंथरा महत्वाकांँक्षा का ज्वलंत उदाहरण हैं
श्रीराम प्रभु का चौदह वर्षीय वनवास इसी के कारण है
बाली-सुग्रीव,रावण-विभीषण भाई -भाई की फूट है
कहीं ना कहीं इसमें सिंहासन पाने का स्वर अस्फुट है
महाभारत का समर भी तो सिंहासन की प्रीत थी
धृतराष्ट्र के पुत्र मोह पर रखी गयी जिसकी नींव थी
सत्ता लोलुपता की खातिर ही जयचंद जैसे गद्दार हुए
कितने वीर पृथ्वीराज ऐसे जयचंदों की नज़र हुए
युगों से चलती आई यह परंपरा आज भी कायम है
सत्ता पद के मद से नैतिकता का होता आया हनन है
राजतंत्र के षड्यंत्रों ने मनुष्य के अधिकारों को खाया है
चोला ओढ़ शराफत का इसने निर्दोषों को सताया है
राजतंत्र के षड्यंत्रों का अंत अंततः प्रजा के हाथों होगा
संगठन में शक्ति है प्रयास करें सफल अवश्य होगा
© Anjalee Chadda Bhardwaj
मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
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