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सब दिखावा है

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                सब दिखावा है          


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शीर्षक - सब दिखावा है




Poem 1

Sab dikhawa he

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ये आरती ये सृंगार आज किस काम की

दस बे दिन के बाद फिर सिकार तेरे शाम की !!


जो आज हर घर हर गली में मेरे नाम के गुण गाते हो

जब मांगती रहम तो गर्दन मोड के क्यों चले जाते हो !!


ये जो लगाए हो तमाशा नारी भक्ति का इस जाहान में

तुम ही वो कातिल निकलो गे जब लौटाओगे समसान में !!


मत करो ये दिखावा उसपे जो तुमको बनाया सवारा है

असली पूजा तो उसकी करो जो बेचारी किसिका साहारा है !!






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