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अब तो आजा माँ


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                अब तो आजा माँ       


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शीर्षक - अब तो आजा माँ 



तरसी है यह अँखियां, न जाने कब से माँ,
पुकारती तेरी संतान, अब तो आजा, हे 'माँ'।

हो रहा है शंखनाद, साथ में फूलों की बरसात,
भँवरे कर रहे गुंजन, बड़ी सुहानी है यह रात,
देखो जरा! अतुलनीय खुशी से कैसे सिंह सजा है,
मस्त पवन से लहरा रही मेरी 'माई' की ध्वजा है।
                   हुई है 'महामाया' अब शेर पर सवार,
                   एक हाथ में सोहे खप्पर, दूजे में तलवार,
                   देखो क्षिति भी स्वागत गीत है गा रही,
                   माँ के दर्शन की अब घड़ी निकट आ रही।
मिटा हर ताप इस धरा से, तेरी बेटियां पुकारती,
कहीं बंद कमरों से तो कहीं दबाई गई, तेरी संताने चित्कारती।
है यकीं हमें भी कि अब धरा का भार हटेगा,
निर्मलता की सुगंध से यह सारा संसार महकेगा।
        मिटेगा हर अँधकार और अमावस को भी उजियारी छाएगी,
        जब इस तम को मिटाने को स्वयं महामाया धरा पर आएंगी




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