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प्यार
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शीर्षक - प्यार
रचना 2-
प्यार (में और तुम)
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जैसे सूखा ताल बचा रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई,
जैसे धूल भरे मेले में, चलने लगे साथ तन्हाई!
जैसे ध्रुव तारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए,
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धूल जाए!
मेरे मन पर भी तेरी यादें कुछ ऐसी अंकित है,
जैसे खंडहर पर पुराने सासक का शासन काल खुल जाए!
तेरे बिन होने का मतलब भी कुछ ऐसा होता है,
जैसे लावारिश बच्चे की आधी रात में नींद खुल जाए!
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