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कैसे संभाले

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               कैसे संभाले               


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शीर्षक - कैसे संभाले 


बागवा प्यारा सा, मेरा तूफा में बिखर सा गया है! 
वक़्त के साथ मेरा बहुत कुछ बदल सा गया है! 

ज़िंदगी की कश्ती बीच मझदार में डगमगाती रही! 
कैसे बचे जब साहिल हमसे पीछे कहीं छूट सा गया है! 

कैसे संभाले जब माँझी ही हमें डुबाने पर उतारूँ हो! 
लगता है हमें खुदा हमारा हमसे अब रूठ सा गया है।

आखिर हौसले की पतवार भी कब तक यूँ बचाएगी! 
जब शांत लहरों में ही तूफान अब उठ सा गया है।

आखिर समेटे भी तो कैसे आईने के टूटे टुकड़ों को।
जब अक्स ही हमारा इस दुनिया में बन झूठ सा गया है।

अब तो ना डूबने का डर और ना ही बचने की आस हैं।
जो संग था कारवां हमारे वह कहीं पीछे छूट सा गया है।




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