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इस सादगी ने
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शीर्षक - इस सादगी ने
मिज़ाज-ए-सहल समझ कर तुम्हें दिल में बसाया था
तुम्हारी इस सादगी ने ही हमें अपना मुरीद बनाया था
रफ़्ता रफ़्ता राह-ए-ज़िंदगी में मोहब्बत के गुल जो खिले
शाख़-ए-दिल पर तुम्हें हमने बड़े ही अदब से बैठाया था
आई बहारें मगर रूठ कर चली गई जाने क्यों इस बार
मसलन उन्हें सलीका तुम्हारे ज़वाब का पसंद ना आया था
सुर्ख़-रू हुआ नहीं चाहतों का कारवाँ तो अब क्या कहिए
बे-रुख़ी थी आपकी और गुनहगार आपने हमें ठहराया था
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