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किस्मत
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शीर्षक - किस्मत
Poem-2
किस्मत
क्यों कोसते हो किस्मत को अपनी,
जरा निकलकर देखो तो बाहर।
जो मिला है तुमको बिन मागें,
उसके लिए तरस रहे लोग हजार।।
तो कोसना बन्द करो किस्मत को,
और शुकिया करो अब उस रब को।
जिसने बख्शा ये सब तुम को,
कोटि-कोटि नमन करो अब उसको।।
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