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जिंदगी औरत की
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शीर्षक - जिंदगी औरत की
शीर्षक : जिंदगी औरत की
विधा। : कविता
जिंदगी औरत की जैसे तूफानों में फँसी किश्ती
पहले जन्म के लिए संघर्ष फिर अस्तित्व की जंग लड़ती
दूसरे घर जाना,बचपन से एक ही घुट्टी पी बड़ी होती
दूसरे घर में भी पराई रहती लोलक सी झूलती रहती
सबकी सुनती-सोचती उसकी सुनने वाला कोई नहीं
माँ-बीबी-बेटी-बहू हैं नाम,अपनी पहचान कुछ नहीं
चाँद के सोने के बाद सोती,सूरज के उठने से पहले जगती
कभी ज़रा वो देर तक सो जाए पूरे घर में अफरातफरी मचती
औरत की जिंदगी की खलनायक इक औरत होती
अपनी बेटी के लिए हाय तौबा बहू के लिए गड्ढे खोदती
कामकाजी महिलाओं की जिंदगी तो दोधारी तलवार समान
काम करके जाती आते काम में जुटती रस्ते से भाजी खरीदती आती
बच्चों की पढ़ाई-ट्यूशन की पूरी जिम्मेदारी उसपर होती
चूक करें बच्चें पर जवाबदारी औरत की होती
जिंदगी औरत की हमेशा ही डर-हवस के साए में रहती
बाहर भेड़िए घूम ही रहे अपनों में भी रंगे सियार कम नहीं
जिंदगी औरत की आजकल समाचार की सुर्खियाँ बन गईं
जिंदगी रही कहाँ मौत के साए में साँस लेने को विवश हो गई
Writer : Ritu Vemuri
Bloomkosh
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