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बंधनों में जकड़ी हुई
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शीर्षक - बंधनों में जकड़ी हुई
शीर्षक: बंधनों में जकड़ी हुई
विधा : कविता
बंधनों में जकड़ी हुई सिसकती हैं नारी की सांँसे
कुर्बान कर देती है अपने सपने पर रीती रहती आंँखें
कितनी ही प्रतिभाएँ कोख में मार डाली जातीं
जो जन्मीं संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी जातीं
दूसरे घर जाने का मंत्र सुन-सुन बड़ी होतीं
चाल-ढाल,रूप-रंग हर कसौटी पर कसी जातीं
नारी ने आधुनिकता का चोला तो पहन लिया
पर हाथ बँटाए नहीं कामकाजी महिला का पिया
एक जैसी पढ़ाई,एक जैसा पदभार पर वेतन नहीं
हर बात पर टोका -टाकी, जमाना ठीक नहीं
परिवार के सपनों पर सदा कुर्बान होते नारी के सपने
त्याग की देवी का ठप्पा लगा छलते उसके अपने
रात दिन सबकी सेवा करे चाहे बच्चे हों या बूढ़े
उसको बीमार तक पड़ने का अधिकार नहीं
अपने जीवन से अपने लिए चंद पल मिलते नहीं
कभी दोस्तों संग जाने को कह दे भ्रकुटियाँ तनी
बंधनों में जकड़ी हुई भी एक पहचान बनाई
इतिहास से वर्तमान तक उदहारण देख लो भाई
Writer : Ritu Vemuri
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