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बदलते लोग

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                बदलते लोग             


©️copyright : Indu sahu   ,bloomkosh के पास संकलन की अनुमति है।इस रचना का प्रयोग Indu sahu    की अनुमति बिना कही नही किया जा सकता है।


शीर्षक -  बदलते लोग

विधा: छंदमुक्त


दिन बदलता, रात बदलती, हरपल वक़्त बदलता है। 

जैसे सूरज चंदा चमके, वैसे लोग बदलते हैं।


ज़िन्दगी के सफर में, कहीं छाँव है तो कहीं धूप।

पल-पल बदल रहा है, लोगों का नित नया स्वरूप।


हर चेहरे के पीछे, एक नया चेहरा रहता है।

अपने दिल की सच्चाई, वक़्त आने पर कहता है।


छल-कपट के भाव, किसी के मन में छाया है।

उसके ऊपर एक नया, चेहरा जग को दिखाया है।


वक़्त-वक़्त की बात है, कोई कभी अगर साथ है।

निज स्वार्थ निकल जाने पर, करता वही बर्बाद है।


देख दुनिया की असलियत, मन मचल रह जाते हैं।

जैसे वक़्त बदलता है, लोग भी बदल जाते हैं।


लोगों को पहचानने में, अक्सर भूल कर जाते हैं।

जैसे वक़्त बदलता है, वैसे लोग बदलते जाते हैं।


स्वरचित मौलिक रचना


-इन्दु साहू,

रायगढ़ (छत्तीसगढ़



Kavita/ bloomkosh


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